14-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

अकाल तख्त-नशीन और महाकाल-मूर्त्त बन समेटने की शक्ति का प्रयोग करो

अकाल मूर्त्त, महाकालेश्वर, सर्वशक्तिवान्, अशरीरी शिव बाबा बोले -

अपने को हर परिस्थिति से पार करने वाले, शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करते हो? शक्तिशाली परिस्थितियों को मास्टर सर्व-शक्तिवान् स्थिति वाले ही सहज पार कर सकते है। दिन-प्रतिदिन प्रकृति द्वारा विकराल रूप से परिस्थितियाँ दिखाई देती जायेंगी। अब तक यह साधारण परिस्थितियाँ हैं। विकराल रूप तो प्रकृति अब धारण करेगी जिसमे विशेष आपदाओं का वार अचानक ही होगा। अभी तो थोड़ा समय पहले मालूम पड़ जाता है। लेकिन प्रकृति का विकराल रूप क्या होगा? एक ही समय प्रकृति के सभी तत्व साथसाथ और अचानक वार करेंगे। किसी भी प्रकार के प्रकृति के साधन बचाव के काम के नहीं रहेगे और ही साधन समस्या का रूप बनेंगे। ऐसे समय पर प्रकृति के विकराल रूप का सामना करने के लिये किस बात की आवश्यकता होगी? अपने अकाल-तख्त नशीन अकालमूर्त बनने से महाकाल बाप के साथ-साथ ‘मास्टर महाकाल’ स्वरूप में स्थित होंगे तब ही सामना कर सकेंगे। महाविनाश देखने के लिये मास्टर महाकाल बनना पड़ेगा। मास्टर महाकाल बनने की सहज विधि कौन-सी है? अकालमूर्त्त बनने की विधि है -- हर समय अकाल-तख्त नशीन रहना। जरा-सा भी देहभान होगा, तो अकाले मृत्यु के समान अचानक के वार में हार खिला देगा! 

जैसे प्रकृति के पाँच तत्व विकराल रूप को धारण करेंगे, वैसे ही पाँच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम वार अति सूक्ष्म रूप में ट्रायल करेंगे अर्थात् माया और प्रकृति दोनों ही अपना फुल फोर्स का अन्तिम दाव लगायेंगे। जैसे किसी भी स्थूल युद्ध में भी अन्तिम दृश्य हृस (हास) पैदा करने वाला होता है और हिम्मत बढ़ाने वाला भी होता है, ऐसे ही कमज़ोर आत्माओं के लिये भी हृस पैदा करने वाला दृश्य होगा - मास्टर सर्वशक्तिवान् आत्माओं के लिये वह हिम्मत और हुल्लास देने वाला दृश्य होगा। 

ऐसे समय में जैसी स्थिति सुनाई उसके लिये विशेष कौनसी शक्ति की आवश्यकता होगी? सेकेण्ड के हार-जीत के खेल में कौन-सी शक्ति चाहिए? ऐसे समय में समेटने की शक्ति आवश्यक है। जो अपने देह-अभिमान के संकल्प को, देह की दुनिया की परिस्थितियों के संकल्प को, क्या होगा? - इस हलचल के संकल्प को भी समेटना है। शरीर और शरीर के सर्व सम्पर्क की वस्तुओं को भी वा अपनी आवश्यकताओं के साधनों की प्राप्ति के संकल्प को भी समेटना है। घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प का विस्तार न हो - बस यही संकल्प हो कि अब अपने घर गया कि गया। शरीर का कोई भी सम्बन्ध व सम्पर्क नीचे न ला सके। जैसे इस समय साक्षात्कार में जाने वाले साक्षात्कार के आधार पर अनुभव करते हैं कि मैं आत्मा इस आकाश तत्व से भी पार उड़ती हुई जा रही हूँ, ऐसे ही ज्ञानी एवं योगी आत्मायें ऐसा अनुभव करेंगी। उस समय ट्रान्स की मदद नहीं मिलेगी। ज्ञान और योग का आधार चाहिए। इसके लिये अब से अकाल-तख्त-नशीन होने का अभ्यास चाहिए। जब चाहे अशरीरीपन का अनुभव कर सकें, बुद्धियोग द्वारा जब चाहे तब शरीर के आधार में आयें। ‘‘अशरीरी भव!’’ का वरदान अपने कार्य में अब से लगाओ। 

ऐसे समय में श्रीमत कैसे लेंगे? टेलीफोन व टेलीग्राम से वायरलेस (बिना तार के विद्युत-चुम्बकीय तरंगों द्वारा समाचार भेजने का यंत्र) सेट है- चाहिये तो वायरलेस लेकिन सेट है? वायरलेस की सेटिंग कैसे होगी? बिल्कुल वाइसलेस (पाप-रहित) वाइसलेस बनना ही वायरलेस सेट की सेटिंग है। जरा अंश के भी अंश-मात्र विकार, वायरलेस के सेट को बेकार कर देगा। इसलिये महीन रूप से स्वयं के स्वयं ही चेकर बनो। तब ही प्रकृति और पाँच विकारों की अन्तिम विदाई के वार को विजयी बन सामना कर सकेंगे। यही प्रकृति वार करने के बजाय बधाई के नजारे सामने लायेगी। चारों ओर जयज यकार की शहनाइयाँ बजायगी। और बापदादा के विजय माला के मणके विश्व के बीच प्रसिद्ध होंगे। सारा विश्व ‘‘अमर भव!’’ का नारा लगायेगा। ऐसे समय के लिये तैयार हो? अथवा समय आपको तैयार करेगा कि आप समय का आह्वान करेंगे? समय पर जागने वाले को क्या टाइटल देते हैं? समय पर कौन जागा? अगर समय पर जागेंगे या यह सोचेंगे कि समय तैयार कर ही देगा या समय पर हो ही जायेगा तो ब्राह्मण वंश की बजाय क्षत्रिय वंश के हो जायेंगे। इसलिये यह आधार भी नहीं लेना। समझा? 

प्रश्न  करते हैं कि अब आगे क्या होने वाला है - विनाश होगा या नहीं होगा? विनाश ज्वाला प्रकट करने वाले इस हलचल में होंगे तो विनाश के निमित्त बनी हुई विनाशकारी आत्माओं के बने हुए प्लैन में भी हलचल हो जाती है। जैसे निमित्त बनी हुई आत्मायें सोचती हैं कि होगा या नहीं होगा - अब होगा या कब होगा? वैसे ही विनाशकारी आत्मायें इसी हलचल में है अब करे या कब करें, करें या न करें? जैसे यादगार चित्र कलियुगी पर्वत को अंगुली देने का है, वैसे ही विनाश कराने के निमित्त बनी हुई सर्व आत्माओं के अन्दर यह संकल्प दृढ हो कि होना ही है। यह संकल्प रूपी अंगुली जब तक सभी की नहीं हुई है, तब तक विनाश का कार्य भी रूका हुआ है। इसी अंगुली से ही कलियुगी पर्वत खत्म होने वाला है। अच्छा। 

ऐसे विकराल रूप को, मास्टर महाकाल स्थिति से सामना करने वाले, सदा अकाल तख्त-नशीन, प्रकृति को अधीन करने वाले, बाप की सर्व प्राप्ति के अधिकारी बच्चों को बापदादा की याद-प्यार और नमस्ते। 

इस मुरली के विशेष ज्ञान-बिन्दु

1. अपने अकाल तख्त नशीन, अकालमूर्त बनने से महाकाल बाप के साथसाथ मास्टर महाकाल स्वरूप में स्थित होंगे तब ही प्रकृति के विकराल रूप का सामना कर सकेंगे। 

2. जैसे प्रकृति के पाँच तत्व विकराल रूप धारण करेंगे वैसे पाँच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम दाव लगायेंगे। ऐसे समय में विशेष रूप से ‘समेटने की शक्ति’ को धारण करने की आवश्यकता है। एक घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य कोई संकल्प का विस्तार न हो। 

3. अशरीरी बनना वायरलेस सेट है। वाइसलेस बनना ही वायरलेस सेट की सेटिंग है। जरा भी अंश के भी अंशमात्र विकार, वायरलेस के सेट को बेकार कर देगा।